शुक्रवार 19 रमज़ान 1445 - 29 मार्च 2024
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हाजी कब क़ुर्बानी करेगा?

प्रश्न

यदि कोई हज्ज करनेवाला हज्ज के मनासिक (अनुष्ठान) की अदायगी के लिए जाता है तो क्या उसके ऊपर क़ुर्बानी करना अनिवार्य है? और क्या वह अपने देश में भी क़ुर्बानी करेगा?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

1- हज्ज के तीन भेद हैं : इफ्राद, तमत्तुअ और क़िरान।

हज्ज इफ्राद यह है कि वह केवल हज्ज करे। तमत्तुअ यह है कि वह उम्रा करे, फिर वह उससे हलाल हो जाए, फिर हज्ज करे। क़िरान यह है कि वह हज्ज और उम्रा को एक ही एहराम में मिलाए, और उसके लिए एक ही तवाफ और एक ही सई उसके हज्ज और उम्रा के लिए काफी है।

उर्वह बिन ज़ुबैर से वर्णित है, वह आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत करते हैं कि उन्हों ने कहाः हम अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ ज़ुल्-हिज्जा का चाँद उदय होने से कुछ दिन पहले रवाना हुए, तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (जो आदमी उम्रा का एहराम बांधना चाहे वह उम्रा का एहराम बांधे, और जो हज्ज का एहराम बांधना चाहे वह हज्ज का एहराम बांधे। और अगर मैं अपने साथ हदी का जानवर न लाया होता तो मैं भी उम्रा का एहराम बांधता। चुनाँचे उनमें से कुछ ने उम्रा का एहराम बांधा और कुछ ने हज्ज का एहराम बांघा...)

इसे बुखारी (हदीस संख्याः 1694) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 1211) ने रिवायत किया है।

2- इफ्राद – जो कि केवल हज्ज करना है उससे पहले उम्रा नहीं करना है -। हज्ज इफ्राद करनेवाले पर हदी को क़ुर्बान करना अनिवार्य नहीं है, किंतु मुस्तहब है।

3- हज्ज तमत्तुअ और क़िरान में एक क़ुर्बानी अनिवार्य है, और वह शुक्राने (आभार प्रकट करने) की क़ुर्बानीहै, जिसमें हज्ज करनेवाला अपने सर्वशक्तिमान पालनहार के प्रति इस बात पर आभार प्रकट करता है कि उसने उसके लिए इस इबादत को धर्मसंगत किया। हज्ज तमत्तुअ में हाजी उम्रा और हज्ज को एक साथ करता है और उन दोनों के दरमियान हलाल हो जाता है और सुगंध, पोशाक और संभोग से लाभान्वित होता है।

सालिम बिन अब्दुल्लाह से वर्णित है कि इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने कहाः अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज्जतुल वदाअ के अवसर पर उम्रा को हज्ज के साथ मिलाकर लाभ उठाया और हदी दिया। चुनाँचे आप ज़ुल-हुलैफा से अपने साथ हदी का जानवर लेकर गए। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शुरूआत में उम्रा का एहराम बांधा था, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज्ज का भी एहराम बांध लिया (नीयत कर ली)। चुनाँचे लोगों ने भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ उम्रा को हज्ज से मिलाकर लाभ उठाया। लोगों में से कुछ ऐसे थे जो अपने साथ हदी का जानवर लेकर गए थे और कुछ ऐसे थे जिनके पास हदी के जानवर नहीं थे। जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मक्का पहुँचे तो लोगों से फरमायाः तुम में से जो हदी का जानवर लेकर आया है उसके लिए कोई चीज़ हलाल नहीं है जिससे वह वंचित कर दिया गया था यहाँ तक कि वह अपना हज्ज पूरा कर ले। और तुम में से जिस व्यक्ति के पास हदी का जानवर नहीं है तो वह बैतुल्लाह (काबा) का तवाफ करे, सफ़ा और मर्वा के बीच सई करे, बाल कटवाए और हलाल हो जाए (एहराम खोल दे)। फिर (हज्ज का समय आने पर) हज्ज का एहराम बांधे। फिर जो हदी का जानवर न पाए वह तीन दिन हज्ज के दिनों में रोज़ा रखे और सात दिन अपने परिवार (घर) में वापस आने के बाद रोज़ा रखे...

इसे बुखारी (हदीस संख्याः 1606) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 1227) ने रिवायत किया है।

4- हदी चौपायों – भेड़-बकरी, गाय और ऊँट – में से वह जानवर है जिसे हज्ज करनेवाला हिल्ल (हरम के बाहर) से अपने एहराम बांधने से पहले अल्लाह के प्राचीन घर की तरफ भेजता है। तमत्तुअ करनेवाले और क़िरान करनेवाले के बीच अंतर यह है किः क़िरान करने वाला अपने उम्रा से फारिग होने के बाद हलाल नहीं होगा, वह 8 ज़ुल-हिज्जा तक अपने एहराम पर बाक़ी रहेगा, और यही उसके हज्ज की नीयत में प्रवेश करने का दिन है।

सुन्नत यह है कि हदी को दस ज़ुल-हिज्जा ईदुन्नह्र के दिन ज़बह किया जाए।

सालिम बिन अब्दुल्लाह से वर्णित है कि इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने कहाः अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज्जतुल वदाअ के अवसर पर उम्रा को हज्ज के साथ मिलाकर लाभ उठाया और हदी दिया। चुनाँचे आप ज़ुल-हुलैफा से अपने साथ हदी का जानवर लेकर गए... फिर आप पलटे तो सफ़ा के पास आए और सफा और मर्वा का सात चक्कर लगाया, फिर आप ने किसी चीज़ को हलाल नहीं समझा जो एहराम की वजह से निषेध हो गई थी यहाँ तक कि आप ने अपना हज्ज पूरा कर लिया और यौमुन्नह्र (क़ुर्बानी) के दिन अपनी हदी को नह्र (वध) कर दिया, फिर वहाँ से मक्का आए और बैतुल्लाह का तवाफ़ किया, फिर हर उस चीज़ से हलाल हो गए जो एहराम की वजह से निषेध हो गई थी...

इसे बुखारी (हदीस संख्याः 1606) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 1227) ने रिवायत किया है।

5- किसी भी हाजी पर उसके देश में क़ुर्बानी करना अनिवार्य नहीं है, क्योंकि क़ुर्बानी करना हज्ज के कार्यों में से है और वह केवल मक्का ही में हो सकता है, यहाँ तक कि अगर हाजी के ऊपर उसके हज्ज के निषेध कामों में पड़ने की वजह से दम (क़ुर्बानी) अनिवार्य हो जाता है, तो वह उसे अपने देश में ज़बह नहीं करेगा, बल्कि उसे मिना या मक्का ही में ज़ब्ह करेगा।

अल्लामा अज़ीमाबादी कहते हैं : हदी के सभी जानवरों को सर्व सहमति के साथ हरम की धरती (परिसर) पर ज़बह करना जायज़ है, परंतु मिना हज्ज के दम के लिए, और मक्का – विशेषकर मर्वा – उम्रा के दम के लिए सबसे अच्छा है। समाप्त हुआ।

लेकिन अगर हाजी का परिवार है जिन्हें उसने अपने देश में छोड़ दिया है, तो उनके लिए ईद के दिन क़ुर्बानी का जानवर खरीदने के लिए पैसा बाक़ी रख देता है, तो यह अच्छा है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद