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अलग-अलग रीति-रिवाजों के अनुसार शब्दों का हुक्म भिन्न होता है

20-07-2021

प्रश्न 331057

कुछ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं : अश्लील कथन एक सापेक्ष अर्थ है, और यह कि कुछ क्षेत्रों में अश्लील (अभद्र) शब्दों का उपयोग इस आधार पर किया जाता है कि वे साधारण और प्रचलित हैं, अश्लील नहीं हैं, और लड़का उन्हें अपने पिता से कह सकता है, तो इस कथन की सच्चाई क्या हैॽ

उत्तर का सारांश:

शब्दों में अश्लीलता और वाणी में अशिष्टता एक ऐसी चीज़ है, जिससे सर्वशक्तिमान अल्लाह घृणा करता है और उसपर बहुत क्रुद्ध होता है। इससे अभिप्राय वह बुरा शब्द है जिसे मानव प्रकृति (स्वभाव) नापसंद करती है, और उनमें से कुछ ऐसे हैं जिसपर सभी समुदायों की सर्वसम्मति होती है, और कुछ अलग-अलग आदतों (रीति-रिवाजों) के अनुसार भिन्न होते हैं। परंतु, माता-पिता को, उनसे बात करने, उन्हें बुलाने, और उनकी स्थिति और स्थान के उपयुक्त शब्दों को चुनने में वह विशेषता प्राप्त है, जो उनके अलावा दूसरों के लिए नहीं है।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम : कथन (बोलने) में अश्लीलता व अभद्रता से अल्लाह घृणा और नफरत करता है।

शब्दों में अश्लीलता और वाणी में अशिष्टता एक ऐसी चीज़ है, जिससे सर्वशक्तिमान अल्लाह घृणा करता है और उसपर बहुत क्रुद्ध होता है। सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :

لَا يُحِبُّ اللَّهُ الْجَهْرَ بِالسُّوءِ مِنَ الْقَوْلِ إِلَّا مَنْ ظُلِمَ  [سورة النساء : 148].

“अल्लाह खुले रूप से बुरी बात कहने को पसंद नहीं करता, परंतु जिसपर ज़ुल्म किया गया हो।” (सूरतुन-निसा : 148).

अल्लामा अस-सा’दी रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“अल्लाह सर्वशक्तिमान सूचना दे रहा है कि वह इस बात को पसंद नहीं करता कि कोई व्यक्ति खुल्लम-खुल्ला बुरी बात कहे। अर्थात् वह उससे नफरत करता है, उससे सख़्त नाराज़ होता है और उसपर दंडित करता है। इसमें वे सभी बुरी बातें शामिल हैं, जो कष्टप्रद और दुखद हैं, जैसे अपशब्द कहना, लांछन लगाना, गाली देना, इत्यादि। क्योंकि यह सब निषिद्ध बातों में से हैं, जिन्हें अल्लाह नापसंद करता है।

इस आयत का आशय यह इंगित करता है कि : अल्लाह तआला अच्छी बात को पसंद करता है, जैसे कि अल्लाह का स्मरण करना, तथा अच्छा और नरम भाषण।

और अल्लाह का कथन :  إِلَّا مَنْ ظُلِمَ  “परंतु जिसपर ज़ुल्म किया गया हो।” अर्थात् : जिसपर ज़ुल्म किया गया है, उसके लिए यह अनुमति है कि उस व्यक्ति पर बद्-दुआ करे जिसने उसपर ज़ुल्म किया है, और उसकी शिकायत करे, तथा खुले तौर पर उस व्यक्ति को बुरी बात कहे, जिसने खुले तौर पर उसे बुरी बात कही है। परंतु उसके बारे में झूठ न बोले, या उसके ज़ुल्म से बढ़कर बदला न ले, या ज़ुल्म करने वाले के अलावा किसी अन्य को अपशब्द न कहे। लेकिन, फिर भी उसे माफ़ कर देना और उससे बदला न लेना सबसे बेहतर है, जैसा कि सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फरमाया :

فَمَنْ عَفَا وَأَصْلَحَ فَأَجْرُهُ عَلَى اللَّـهِ  [سورة الشورى : 40]

“लेकिन जो क्षमा कर दे और सुधार कर ले, तो उसका बदला अल्लाह के ज़िम्मे है।” (सूरतुश-शूरा : 40)

“तफ़सीर अस-सा’दी” (पृष्ठ 212) से उद्धरण समाप्त हुआ।

इसे रोकने के कारणों के संबंध में प्रशन संख्या : (198252) के उत्तर में चर्चा की जा चुकी है।

दूसरा : अश्लील, बुरे और गंदे शब्द एवं कर्म को कहते हैं, जिसे मानव प्रकृति (स्वभाव) नापसंद करती है।

“अश्लीलता” घृणास्पद बातों को स्पष्ट शब्दों में अभिव्यक्त करने को कहते हैं। और यह अधिकांश रूप से संभोग और उससे संबंधित शब्दों के संदर्भ में होता है। अच्छे लोग इन वाक्यांशों से बचते हैं और उन्हें अभिव्यक्त करने के लिए सांकेतिक शब्दों का उपयोग करते हैं।

तथा कुछ अश्लील अभिव्यक्तियाँ हैं, जिनका उल्लेख करना घृणित समझा जाता है, और इसका उपयोग गाली देने और ताना मारने में सबसे अधिक किया जाता है। और हर वह चीज़ जिससे शर्म आती है, उसके स्पष्ट शब्दों का उल्लेख नहीं किया जाना चाहिए; क्योंकि यह अश्लीलता (फूहड़पन) है।

देखें : “इह्याओ उलूमिद्दीन” (3/122), “मौइज़तुल-मूमिनीन” (191)।

संक्षेप में, अश्लील, बुरे और गंदे शब्द एवं कर्म को कहते हैं, जिसे मानव प्रकृति (स्वभाव) नापसंद करती है। उनमें से कुछ ऐसे हैं जिसपर सभी समुदायों की सर्वसहमति है, और कुछ अलग-अलग आदतों (रीति-रिवाजों) के अनुसार भिन्न होते हैं।

अतः शीलवान (मुरौवती) लोग अपनी बातचीत में जिसके आदी हैं, और वे अपनी सामान्य परिस्थितियों में उसे नापसंद नहीं करते हैं : वह अश्लील नहीं होगा और उससे निषेध नहीं किया जाएगा, भले ही अन्य लोग उससे बचते हों और अपने भाषण में उसे स्वीकार न करते हों।

तथा जिसे शीलवान और प्रतिष्ठित व सम्मानित लोग नापसंद करते हैं और अपने बीच बात करने में और एक-दूसरे को बुलाने में उसका उपयोग नहीं करते हैं : तो वह अश्लील होगा, जो निषिद्ध है।

देखें : “इह्याओ उलूमिद्दीन” (3/122), “नज़रतुन नईम” (11/5231)।

परंतु, माता-पिता को, उनसे बात करने, उन्हें बुलाने और उनकी स्थिति और स्थान के उपयुक्त शब्दों को चुनने में वह विशेषता प्राप्त है, जो उनके अलावा दूसरों के लिए नहीं है।

अतः उन दोनों को इस तरह संबोधित करना चाहिए, जो पिता की स्थिति और माता की स्थिति के लिए उपयुक्त हो। वह मात्र उनके अलावा अन्य लोगों के साथ एक ज्ञात संबोधन की तरह न हो; बल्कि, इस उस तरह होना चाहिए, जिस तरह कहने वाले के देश में शीलवान और प्रतिष्ठित लोग अपने पिता और माता को संबोधित करते हैं।

इसीलिए विद्वानों ने बच्चे को अपने पिता को उनके नाम से, या अपनी माँ को उनके नाम से बुलाने से मना किया है, क्योंकि माता-पिता के संबोधन में यह अनुचित है। और यह ऐसा है जिसे सभी लोग अशिष्टता और दुष्टाचार के रूप में जानते और देखते हैं।

इसके बारे में विस्तृत जानकारी प्रश्न संख्या : (237569) के उत्तर में देखें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

शिष्टाचार, नैतिकता और हृदय विनम्र करने वाले तत्व
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