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नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर से क़ुर्बानी और इस विषय में वर्णित हदीस का हुक्म

18-10-2013

प्रश्न 192721

क्या मुसलमान का नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर से क़ुर्बानी करना सही है ? इस मुद्दे में विद्वानों का विचार क्या है ? इस हदीस की प्रामाणिकता क्या है और उसकी व्याख्या क्या है ? हनश से वर्णित है वह अली रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि : ‘‘वह दो मेंढों की क़ुर्बानी करते थे, एक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर से और दूसरी अपनी तरफ से। उनसे इसके (कारण के) बारे में पूछा गया, तो उन्हों ने फरमाया : मुझे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसका आदेश दिया है। इसलिए मैं इसे कभी नहीं छोड़ूँगा।’’ इसे तिर्मिज़ी और अबू दाऊद ने रिवायत किया है।

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

किसी व्यक्ति के लिए जायज़ नहीं है कि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर से क़ुर्बानी करे; क्योंकि इबादतों के अंदर मूल सिद्धांत निषेद्ध और मनाही है यहाँ तक कि उसके विरूद्ध कोई दलील (प्रमाण) साबित हो जाए।

जहाँ तक उस हदीस का संबंध है जिसकी ओर प्रश्न करने वाले ने संकेत किया है, तो उसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है और शैख अल्बानी वग़ैरह ने उसे ज़ईफ क़रार दिया है, जैसाकि इन शा अल्लाह उसका वर्णन आगे आने वाला है।

तिर्मिज़ी कहते हैं कि : (1495) हमसे हदीस बयान किया मुहम्मद बिन उबैद अल-मुहारिबी अल-कूफी ने, उन्हों ने कहा कि हमसे हदीस बयान किया शरीक ने अबुल-हसना के माध्यम से, उन्होंने अल-हकम से रिवायत किया, उन्हों ने हनश से रिवायत किया, उन्हों ने अली रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया कि: ‘‘वह दो मेंढों की क़ुर्बानी करते थे, एक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर से और दूसरी अपनी तरफ से। उनसे इसके (कारण के) बारे में पूछा गया, तो उन्हों ने फरमाया : मुझे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसका आदेश दिया है, इसलिए मैं इसे कभी नहीं छोड़ूँगा।’’

फिर तिर्मिज़ी अपनी हदीस रिवायत करने के बाद कहते हैं : ‘‘यह हदीस गरीब है इसे हम केवल शरीक की हदीस से जानते हैं ..’’

तथा इसे अहमद (हदीस संख्या : 1219) और अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2790) ने शरीक बिन अब्दुल्लाह अल-क़ाज़ी के माध्यम से ‘‘वसीयत’’ के शब्द के साथ रिवायत किया है, वह कहते हैं : हमसे हदीस बयान किया उसमान बिन अबू शैबा ने, उन्हों ने कहा कि हमसे हदीस बयान किया शरीक ने अबुल-हसना के माध्यम से, उन्होंने अल-हकम से रिवायत किया, उन्हों ने हनश से रिवायत किया कि उन्हों ने कहा : ‘‘मैं ने अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) को दो मेंढ़ों की क़ुर्बानी करते हुए देखा, तो उनसे कहा: यह क्या है ? तो उन्हों ने उत्तर दिया : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझे वसीयत की है कि मैं आपकी ओर से क़ुर्बानी करूँ। अतः मैं आपकी ओर से क़ुर्बानी करता हूँ।’’

अल्लामा मुबारकपूरी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

अल्लामा मुंज़िरी कहते हैं :हनश, अबुल मोतमिर अल-कनानी अस-सनआनी हैं, उनके बारे में कई एक ने कलाम किया है, तथा इब्ने हिब्बान अल बुस्ती कहते हैं : वह सूचना के अंदर बहुत वह्म वाले थे, वह अली रज़ियल्लाहु अन्हु से अकेले ऐसी चीज़ें रिवायत करते हैं जो विश्वसनीय और भरोसेमंद रावियों के समान नही होती हैं यहाँ तक कि वह उन लोगों में से हो गए जिनकी रिवायत से हुज्जत नहीं पकड़ी जाती है।

तथा शरीक, अब्दुल्लाह अलक़ाज़ी के बेटे हैं जिनके बारे में कलाम है, और मुस्लिम ने मुताबअत के अध्याय में उनकी हदीसों का उल्लेख किया है।'' अंत हुआ।

मैं कहता हूँ : अबुल हसना जो अब्दुल्लाह के शैख (अध्यापक) हैं, मजहूल (अज्ञात) हैं जैसाकि आप जान चुके हैं। अतः यह हदीस ज़ईफ है।’’

‘‘तोहफतुल अह़वज़ी’’ से अंत हुआ।

शैख अल्बानी रहिमहुल्लाह ने फरमाया : ‘‘मैं कहता हूँ कि उसकी इसनाद ज़ईफ़ है; क्योंकि शरीक की याद दाश्त (स्मरण शक्तिम) कमज़ोर थी। - वह अब्दुल्लाह अल-क़ाज़ी के बेटे हैं-।

‘हनश’ को - जो कि अल-मोतमिर अस-सनआनी के बेटे हैं - जमहूर ने ज़ईफ क़रार दिया है।

तथा 'अबुल हसना' मजहूल (अज्ञात) व्यक्ति हैं।’’

‘‘ज़ईफ अबू दाऊद’’ से अंत हुआ।

तथा उपर्युक्त कारणों की वजह से, शैख अब्दुल मोहसिन अल-अब्बाद हफिज़हुल्लाह ने भी इसे ज़ईफ क़रार दिया है, जैसाकि उनकी सुनन अबू दाऊद की व्याख्या में है।

जब हदीस का ज़ईफ व कमज़ोर होना तय हो गया, तो मूल सिद्धांत पर अमल करना निर्धारित और अनिवार्य हो गया, और मूल सिद्धांत नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर से क़ुर्बानी का जायज़ न होना है।

शैख अब्दुल मोहसिन अल-अब्बाद हफिज़हुल्लाह ने फरमाया : ‘‘इन्सान जब क़ुर्बानी करेगा, तो स्वयं अपनी तरफ से और अपने घर वालों की ओर से क़ुर्बानी करेगा। तथा वह अपने घर वालों में से जीवित और मृत लोगों की ओर से क़ुर्बानी कर सकता है। अगर कोई आदमी वसीयत कर जाए कि उसकी ओर से क़ुर्बानी की जाए तो उसकी तरफ से क़ुर्बानी की जानी चाहिए।

रही बात मृत की ओर से स्थायी रूप से अलग क़ुर्बानी करने की, तो हम कोई प्रमाणित चीज़ नहीं जानते जो इस पर तर्क स्थापित करती हो। लेकिन जहाँ तक उसके अपनी तरफ से और अपने घर वालों या अपने रिश्तेदारों की ओर से, चाहे वे जीवित हो या मृत, क़ुर्बानी करने का संबंध है, तो इसमें कोई हरज (आपत्ति) की बात नहीं है। सुन्नत (अर्थात हदीस) में इसको इंगित करने वाला प्रमाण आया है। चुनाँचे मृतक उसमें (जीवित लोगों के) अधीन होकर शामिल होंगे। रही बात उनकी ओर से स्थायी तौर पर अलग से क़ुर्बानी करने की, और यह कि ये उनकी ओर से बिना वसीयत के हो, तो मैं इस पर दलालत करने वाली कोई चीज़ नहीं जानता।

जहाँ तक उस हदीस का संबंध है जिसे अबू दाऊद ने अली रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि वह दो मेंढों की क़ुर्बानी किया करते थे, और कहते थे कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें इसकी वसीयत की है, तो वह हदीस अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से साबित नहीं है। क्योंकि उसके इसनाद में ऐसा रावी (वक्ता) है जो मजहूल (अज्ञात) है। तथा उसमें ऐसा रावी भी है जिसके बारे में कलाम किया गया है पर वह अज्ञात नहीं है। मनुष्य अगर चाहता है कि उसकी वजह से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को ऊँचा पद और उच्च स्थिति प्राप्त हो, तो उसे चाहिए कि अपने लिए नेक काम करने में संघर्ष करे। क्योंक अल्लाह तआला अपने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उसी तरह (सवाब) प्रदान करेगा जिस तरह उसे प्रदान किया है; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ही लोगों को भलाई का मार्ग दर्शाया है :

‘‘जिसने किसी भलाई पर लोगों का मार्गदर्शन किया तो उसके लिए उसके करने वाले के समान अज्र व सवाब है। ...’’ सुनन अबू दाऊद की शरह (वयाख्या) से अंत हुआ।

अगर हदीस की प्रामाणिकता को मान भी लिया जाए, तो यह वसीयत के साथ विशिष्ट है। जैसाकि अबू दाऊद की हदीस में स्पष्ट रूप से आया है। जबकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अली रज़ियल्लाहु अन्हु के अलावा किसी भी आदमी को वसीयत नहीं की है। अतः शरीअत के प्रमाणों के पास ठहर जाना और उससे आगे न बढ़ना अनिवार्य है।

मृत की ओर से क़ुर्बानी करने के हुक्म से संबंधित अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्या (36596) का उत्तर देखें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

बलिदान (क़ुर्बानी)
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