गुरुवार 18 रमज़ान 1445 - 28 मार्च 2024
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एक गैर मुस्लिम अनुसंधान कर्ता जिब्रील अलैहिस्सलाम के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बात चीत करने के प्रमाण के बारे में प्रश्न करता है

प्रश्न

मैं संयुक्त राज्य (अमेरिका) में एक कालेज में पढ़ता हूँ। और मैं आप से यह प्रश्न इस लिये कर रहा हूँ ताकि मैं उस से अपने अनुसंधान (और उस ने विषय का नाम उल्लेख किया) में लाभान्वित हो सकूँ। आप लोगों के पास इस बात का प्रमाण (सबूत) क्या है कि जिब्रील (अलैहिस्सलाम) ने मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से बात चीत की है ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

नि:सन्देह जिब्रील अलैहिस्सलाम ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बिना किसी ओट और पर्दे के बात चीत की है, और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें उन के वास्तविक रूप में देखा है, और यह तथ्य बहुत सारी आयतों और हदीसों में प्रमाणित है :

1- अल्लाह तआला का फरमान है :

"क़सम है तारे की जब वह गिरे। कि तुम्हारे साथी ने न रास्ता खोया है और न वह टेढ़े रास्ते पर हैं। और न वह अपनी इच्छा से कोई बात कहते हैं। वह तो केवल वह्य (प्रकाशना) होती है जो उतारी जाती है। उसे पूरी ताक़त वाले फरिश्ते ने सिखाया है।" (सूरतुन् नज्म : 3 - 5)

भाष्यकारों (मुफस्सेरीन) ने उल्लेख किया है कि अल्लाह तआला के फरमान (उसे बलवान और पूरी ताक़त वाले ने सिखाया है) से अभिप्राय जिब्रील अलैहिस्सलाम हैं, उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को वह्य सिखाई है। और वह्य के रूपों और शक्लों में से एक : फरिश्ता और सन्देष्टा के बीच सीधी बात चीत है। इस आयत से प्रमाणित हुआ कि जिब्रील अलैहिस्सलाम ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बात चीत की है। इस तर्क का समर्थन सर्वशक्तिमान अल्लाह के इस फरमान से भी होता है : "और नि: सन्देह यह (क़ुरआन) पूरी दुनिया के रब (पालनहार) का उतारा हुआ है, इसे अमानतदार फरिश्ता (यानी जिबरील अलैहिस्सलाम) लेकर आया है। आप के दिल पर (नाज़िल हुआ है) कि आप सावधान (आगाह) कर देने वालों में से हो जायें। (यह) साफ अरबी भाषा में है।" (सूरतुश्शु-अरा : 192 – 195)

और अल्लाह तआला के इस फरमान से भी उस का समर्थन होता है : "(ऐ नबी!) आप कह दीजिए कि जो जिब्रील के दुश्मन हो जिस ने आप के दिल पर अल्लाह का सन्देश उतारा है, जो सन्देश अपने सामने (पूर्व) की किताब की पुष्टि करने वाला और मोमिनों (विश्वासियों) को मार्गदर्शन और शुभ सूचना देने वाला है।" (सूरतुल बक़रा : 97)

2- इसी प्रकार वह्य (प्रकाशना) के प्रारंभ होने की सुप्रसिद्ध घटना भी इस का एक प्रमाण है, जिस समय कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हिरा नामी ग़ार (गुफा) में एकान्त में थे कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास जिब्रील अलैहिस्सलाम आये और आप को पढ़ने का आदेश दिया। आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि : "अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर वह्य की शुरूआत नीन्द में अच्छे (सच्चे) सपनों से हुई। आप जो भी सपना देखते थे, वह सुब्ह की सफेदी की तरह प्रकट होता था। फिर आप को तन्हाई (एकान्त) महबूब हो गई। चुनाँचि आप "ग़ारे-हिरा" में तन्हाई अपना लेते और कई कई रात घर आए बिना इबादत में व्यस्त रहते थे। इस के लिए आप तोशा ले जाते थे। फिर आप खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास आते और उतने ही दिनों के लिए फिर तोशा ले जाते। यहाँ तक कि आप के पास हक़ आ गया और आप गारे हिरा ही में थे। चुनाँचि आप के पास फरिश्ता आया और उसने कहा : पढ़ो। आप ने फरमाया: मैं पढ़ा हुआ नहीं हूँ। आप कहते हैं कि इस पर उसने मुझे पकड़ कर इतना ज़ोर से दबाया कि मेरी शक्ति निचोड़ दी। फिर उसने मुझे छोड़ कर कहा: पढ़ो। मैं ने कहा: मैं पढ़ा हुआ नहीं हूँ। उस ने दुबारा पकड़ कर दबोचा यहाँ तक कि मैं थक गया, फिर छोड़ कर कहा: पढ़ो, तो मैं ने कहा: मैं पढ़ा हुआ नहीं हूँ। उस ने तीसरी बार मुझे पकड़ कर दबोचा, फिर छोड़ कर कहा:

"पढ़ो अपने रब के नाम से जिस ने पैदा किया, मनुष्य को खून के लोथड़े से पैदा किया। पढ़ो और तुम्हारा रब बहुत करम वाला (दानशील) है।" (सूरतुल अलक़ : 1 – 3)

इन आयतों के साथ अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पलटे, आप का दिल धक धक कर रहा था .." (सहीह बुख़ारी हदीस संख्या : 3, सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 231)

4- आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि : हारिस बिन हिशाम रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न करते कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर ! आप के पास वह्य कैसे आती है ? तो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "कभी कभार मेरे पास घंटी बनजे की तरह आती है और यह रूप मेरे ऊपर सब से कठिन होती है, फिर मुझ से यह स्थिति समाप्त होती है और मैं उस ने जो कुछ कहा होता है उसे समझ चुका होता हँ, और कभी कभी फरिश्ता मेरे पास एक मानव का रूप धारण कर के आता है और मुझ से बात करता है, और जो कुछ वह कहता है मैं उसे याद कर लेता हूँ . . " (इसे बुखारी ने रिवायत किया है हदीस संख्या : 2)

4- जिब्रील अलैहिस्सलाम की लंबी हदीस जिस में वह एक परदेसी आदमी के रूप में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आये, और आप के पास बैठ कर इस्लाम, ईमान और एहसान के बारे में प्रश्न करने लेग, और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन को उत्तर दे रहे थे, और आप जानते थे कि वह जिब्रील हैं, फिर जब वह अपने प्रश्नों से फारिग हो गये और वापस चले गये तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने लोगों को सूचित किया कि वह जिब्रील थे जो उन के पास उन्हें उन का दीन सिखाने के लिए आये थे। देखिये : सहीह बुखारी हदीस संख्या : 48, सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 9).

5- तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस्रा और मेराज के घटने में जो कुछ उल्लेख हुआ है उस से भी इस का पता चलता है, जिस में वर्णित हुआ है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जिब्रील अलैहिस्सलाम से पूछते थे और जिब्रील आप को जवाब देते थे। देखिये : सहीह बुखारी हदीस संख्या : 2968, सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 238, तथा इस्रा और मेराज के क़िस्से का वर्णन करने वाली अन्य हदीसें।

6- इसी तरह बहुत सारी ऐसी हदीसें हैं जिन में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं : "मेरे पास जिब्रील आये और कहा . . . " उदाहरण के तौर पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "मेरे पास जिब्रील अलैहिस्सलाम आये और फरमाया : आप की उम्मत का जो आदमी इस हाल में फौत हुआ कि वह अल्लाह के साथ कुछ भी शिर्क नहीं करता था तो वह स्वर्ग में जायेगा। मैं ने कहा : चाहे वह ऐसा और ऐसा किया हो ? आप ने फरमाया : हां।" (सहीह बुखारी हदीस संख्या : 2213, सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 137)

तथा जब अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप के सहाबा ख़न्दक़ के युद्ध से वापस लौटे और अपने हथियार उतार दिये और स्नान करने लगे, तो जिब्रील अलैहिस्सलाम आप के पास आये इस हाल में कि उन के सिर पर धूल अटा हुआ था, और कहा : "आप ने हथियार उतार दिया ! अल्लाह की क़सम मैं ने हथियार नहीं उतारी है। तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : तो कहाँ का इरादा है ? उन्हों ने - बनू क़ुरैज़ा की ओर संकेत करते हुए - कहा : वहाँ का। अत: रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन की ओर निकल पड़े।" (सहीह बुखारी हदीस संख्या : 2602, सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 3315)

इसी तरह के अन्य प्रमाण भी हैं।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

स्रोत: शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद